महालय पर पाक्षिक श्राद्ध फलम्
आयु: प्रजा धनं विद्याम् स्वर्गं मोक्ष सुखानिचl
प्रयछंति तथा राज्यम् पितर: श्राध्द तर्पिता:ll
Shraddha Karma leads to the attainment of life, progeny, wealth, knowledge, heaven, salvation and kingdom.
Mahalaya Shraddha Party
This Shraddha is performed on death tithis or Amavasya day in Bhadrapada Vadya Paksha for the sake of all ancestors and dead relatives and is called Mahalayashraddha.
Meaning of the word Shraddha
Shraddha is the legal donation of any liquid & food dishes, Amanna and Hiranya Donation of money to Brahmins etc. for liberating souls from hell
Believing that there are no forefathers, the sons and daughters who do not perform Shraddha the fathers of those drink blood (blood) : Dharmasindhu
महालय पर पाक्षिक श्राद्ध फलम्
आयु: प्रजा धनं विद्याम् स्वर्गं मोक्ष सुखानिचl
प्रयछंति तथा राज्यम् पितर: श्राध्द तर्पिता:ll
श्राद्ध कर्माने आयुष्य संतती धन विद्या स्वर्ग मोक्ष आणि राज्य प्राप्ती होते.
महालय श्राद्ध पक्ष
सर्व पितरांच्या व मयत आप्तेष्टांच्या प्रित्यर्थ, भाद्रपद वद्य पक्षात मरण तिथीस किंवा अमावस्येच्या दिवशी पक्ष म्हणून हे श्राद्ध करतात यास महालयश्राद्ध असे म्हणतात.
श्राद्ध शब्दाचा अर्थ
मृत पिता इत्यादिकांस उद्देशून विहित काली व देशी पक्वान्न, आमान्न व हिरण्य यातून कोणत्याही एका द्रव्याचे विधियुक्त दान करणे ते श्राद्ध होय.
पितर नाहीत असे अश्रद्ध ने मानून जो श्राद्ध करीत नाही त्याचे पितर रुधिर पान म्हणजे रक्त प्राशन करतात(पितात) : धर्मसिंधु
हिन्दी मे :
महालय पर पाक्षिक श्राद्ध फलम्
आयु: प्रजा धनं विद्याम् स्वर्गं मोक्ष सुखनिचल प्रयञ्चन्ति तथा राज्यम् पितर: श्राद्ध तर्पिता:ll
श्राद्ध कर्म से आयुष्य शांति धन विद्या स्वर्ग मोक्ष और राज्य प्राप्त होता है।
महालय श्राद्ध पक्ष सब पितर तथा गुज़रे हुए संबंधी की तृप्ति हेतु भाद्रपद वद्य पक्ष मे मरण तिथि को या अमावस्या के दिन जो श्राद्ध किया जाता है उसे महालयश्राद्ध कहते है ।
श्राद्ध शब्द का अर्थ मृत पिता या मृत परिचित के लिए विहित काल मे व देशी पक्वान्न,अन्न और हिरण्य (दक्षिणा) इसमें से कोई भी एक द्रव्य का विधियुक्त दान करना श्राद्ध होता है ।
पितर नहीं है ऐसे समज के जो श्राद्ध नहीं करते उनके पितर रुधिर पान याने रक्त प्राशन करते है : धर्मसिंधु
Comments