श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी होय. श्रावण शुक्ल पंचमी गीत नागपूजादि कृत्यांविषयी सूर्योदयापासून तीन मुहूर्त व्यापिनी असेल ती परत घ्यावी. नागपूजे विषयी पंचमी षष्ठीयुक्त करावी. कारण तिचे ठाई नाग संतुष्ट होतात. श्रावण महिन्यात शुक्ल पक्षी पंचमीस गृह द्वाराच्या दोन बाजूस गोमयाने भींत सारवून सर्प काढावे. दधि, दुर्वांकुर, कुश (दर्भ) , गंध पुष्प उपहार ब्राह्मणभोजन यांहीकरून यथाशास्त्र पूजन करावे. जो मनुष्य या पंचमी भक्तियुक्त नागपूजन करतील त्या सर्पापासून भय कोठेही होणार नाही.
नवनाग नावे अनंत, वासुकि,शेष, पद्मनाभ,कंबल,शंखपाल, धृतराष्ट्र तक्षक, कालिया.
श्री नवनाग स्तोत्र
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत
ll इति श्री नवनागस्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll
नाग गायत्री मंत्र
ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धी माहि तन्नो सर्प प्रचोदयात ll
उत्तर प्रदेश की धर्म नगरी वाराणसी में एक ऐसा मशहूर कुंआ है, जिसे नागलोक का दरवाजा बताया जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागपंचमी के दिन यहां दर्शन करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। यहां के नवापुरा नामक स्थान में स्थित कुएं बारे में मान्यता है कि कि इसकी गहराई पाताल और नागलोक को जोड़ती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यहां आज भी नाग निवास करते हैं। नागकुंड स्थित इस कुएं का वर्णन शास्त्रों में किया गया है।
महर्षि पतंजलि के तप से हुआ था निर्माण
देश में तीन ऐसे ही कुंड हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि दर्शन करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि जैतपुरा का कुंड ही मुख्य नागकुंड है। जिसका निर्माण महर्षि पतंजलि ने अपने तप से किया था। मान्यताओं के अनुसार, महर्षि पतंजलि ने एक शिवलिंग की भी स्थापना की थी। बताया जाता है कि नागपंचमी से पहले कुंड की सफाई कर जल निकाला जाता है और फिर शिवलिंग की विधि-विधान से पूजा-अर्चना होती है।
नागकुंड की गहराई-
इस जाने-माने स्थान को करकोटक नाग तीर्थ के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि अभी तक नागकुंड की गहराई की सही जानकारी नहीं हो सकी है। कहा जाता है कालसर्प दोष से मुक्ति पाने का यह प्रथम स्थान है, जबकि दुनिया में ऐसे तीन स्थान हैं।
भगवान शिव के इस रूप की पूजा-
यहां भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। बताया जाता है कि भगवान शिव की पूजा यहां नागेश के रूप में होती है। भगवान शिव के इस स्वरूप की पूजा के कारण इस मंदिर को करकोटक नागेश्वर के नाम से जाते हैं।
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