भद्रजनों, धंकाररूपिणी महाविद्या धूमावती जी की जयंती के अगले दिन से प्रारम्भ होता है दस दिनात्मक गंगा दशहरा का पावन पर्व। धूर्जटी शिव शंकर की जटा से निकलने वाली माँ गंगा, जिनका जल जिस स्थान से होकर गया वे पवित्र तीर्थ बन गए। हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में गौ, गंगा एवं गायत्री इन तीनों को पापनाशक त्रिवेणी बतलाया गया है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन कलिमल का दहन करने में सक्षम गंगाजी अवतरण हुआ था अतः इस इस अवसर पर गंगास्नान का विशेष महत्व बताया गया है। आइये पहले माँ गंगा के स्वरूप का चिंतन करते हैं। माँ गंगा जी का ध्यान इस प्रकार है-
ध्यान
सितमकर-निषण्णां शुक्लवर्णां त्रिनेत्राम् करधृत-कमलो-द्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टाम् । विधिहरिहर-रूपां सेन्दु-कोटीरचूडाम् कलितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि ॥
अर्थात्
श्वेत मकर पर विराजित, शुभ्र वर्ण वाली, तीन नेत्रों वाली, दो हाथों में भरे हुए कलश तथा दो हाथों में सुंदर कमल धारण किए हुए, भक्तों के लिए परम इष्ट, ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का रूप अर्थात् तीनों के कार्य करने वाली, मस्तक पर सुशोभित चंद्रजटित मुकुट वाली तथा सुंदर श्वेत वस्त्रों से विभूषित माँ गंगा को मैं प्रणाम करता हूँ।
गंगा दशहर पूजा-विधि दशहर आरंभ
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पावन पर्व मनाया जाता है. कहा जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से 10 तरह के पापों से मुक्ति मिलती है, मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है. गंगा दशहरा 16 जून यानी आज मनाया जा रहा है.
Ganga Dussehra 2024: ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन हस्त नक्षत्र में मां गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थीं. गंगा दशहरा पर दान और स्नान का अधिक महत्व बताया गया है. इस साल गंगा दशहरा 16 जून यानी आज मनाया जा रहा है. हिंदू धर्म के अनुसार गंगा स्नान से करीब दस हजार पापों से मुक्ति मिलती है. इस दिन विष्णुपदी, पुण्यसलिला मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ, अतः यह दिन 'गंगा दशहरा' या जेठ का दशहरा के नाम से भी प्रचलित है. गंगाजल के स्पर्श से स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि को पहाड़ों से उतरकर मां गंगा हरिद्वार ब्रह्मकुंड में आईं थीं और तभी से इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाने लगा. मान्यता है कि गंगावतरण की इस पावन तिथि के दिन गंगाजी में स्नान करना बेहद कल्याणकारी है. गंगा दशहरा पर्व का महत्व स्नान और दान से जुड़ा है.
गंगा दशहरा पूजन मंत्र
1. गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
2. गंगागंगेति योब्रूयाद् योजनानां शतैरपि। मच्यते सर्व पापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति।।
3. गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम्। त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम्।।
गंगा दशहर पूजा-विधि
1. आमतौर पर गंगा दशहरा पर श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करते हैं। 2. नहाने के दौरान 'ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः' का जाप करें. 3. इसके बाद 'ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा' करके हवन करे. 4. इसके बाद ' ऊँ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं (वाक्-काम-मायामयि) हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा.' इस मंत्र से पांच पुष्पाञ्जलि अर्पण करके भगीरथ हिमालय के नाम- मंत्र से पूजन करें. 5. 10 फल, 10 दीपक और 10 सेर तिल का 'गंगायै नमः' कहकर दान करें. साथ ही घी मिले हुए सत्तू और गुड़ के पिण्ड जल में डालें. 6. इसके अलावा 10 सेर तिल, 10 सेर जौ, 10 सेर गेहूं 10 ब्राह्मण को दें. गंगा दशहरा का महत्व हिंदुओं में गंगा दशहरा का बहुत महत्व है। इस दिन पूजा-पाठ, हवन और मुंडन जैसे शुभ काम किए जाते हैं. इस दिन लोग गंगा नदी के किनारे जाकर तप, हवन, दान और जप करते हैं। मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन जिस भी चीज़ का दान करें उसकी संख्या 10 होनी चाहिए। इसके साथ ही हिंदु पुराणों के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगा का जन्म हुआ था। इसलिए गंगा नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है।Ganga Dussehra 2024: गंगा दशहरा पर मां गंगा को प्रसन्न करने के लिए करें इस स्तोत्र का पाठ
Ganga Dussehra 2024: गंगा दशहरा 16 जून 2024 को है. इस दिन गंगा जी को प्रसन्न करने के लिए पूजा, स्नान के लिए विशेष स्तुति का पाठ जरुर करें, इससे मोक्ष प्राप्ति का रास्ता आसान हो जाता है. गंगा दशहरा 2024
Ganga Dussehra 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि गंगा दशहरा 16 जून 2024 को मनाया जाएगा. गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान, 10 तरह की चीजों का दान और पितरों का तर्पण करने वालों को अनेक लाभ मिलते हैं.
व्यक्ति के कई जन्मों के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन अगर आप गंगा नदी में स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो घर में गंगाजल को पानी में डालकर स्नान करें और गंगा जी की स्तुति का पाठ करें. इससे गंगा स्नान के समान पुण्य मिलता है.
श्री गंगा जी की स्तुति
गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥
मां गंगा स्तोत्रम्॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव
जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं
पाहि कृपामयि मामज्ञानम्
हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे
हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं
कुरु कृपया भवसागरपारम्
तव जलममलं येन निपीतं,
परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः
किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे
खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये,
पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये
कल्पलतामिव फलदां लोके,
प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे
विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे
तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः
पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे
कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे
पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे
जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे
सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये
रोगं शोकं तापं पापं
हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे
त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे
अलकानन्दे परमानन्दे
कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः
खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः
वरमिह नीरे कमठो मीनः
किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव
न हि दूरे नृपतिकुलीनः
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये
देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं
पठति नरो यः स जयति सत्यम्
येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां
भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः
परमानन्दकलितललिताभिः
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं
वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति
सुखी स्तव इति च समाप्तः
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥
Ganga Dussehra known as Gangavtaran , is a Hindu festival celebrating the avatarana (descent) of the Ganges. It is believed by Hindus that the holy river Ganges descended from heaven to earth on this day.Ganga Dussehra takes place on Dashami (10th day) of the waxing moon (Shukla Paksha) of the Hindu calendar month Jyeshtha. The festival celebration lasts ten days, including the nine days preceding this holy day. Ganga Dussehra is observed by Hindus mainly in the states of Uttar Pradesh, Uttarakhand, Bihar, and West Bengal, where the river flows. Haridwar, Varanasi, Garhmukteshwar, Rishikesh, Prayagraj, and Patna are the main locations of the celebrations, where devotees gather at the banks of the Ganges and perform aartis (a religious ritual in which a light lamp is moved clockwise circularly in front of a deity as a part of prayer) to the river. Taking a dip in the river on this day is believed to bring the devotee to a state of purification and also heal any physical ailments he may have. In Sanskrit, dasha means ten and hara means destroy; thus bathing in the river during these ten days is believed to rid the person of ten sins or, alternatively, ten lifetimes of sins. On the same day, the river Yamuna is also worshipped and kite-flying events are organized. Devotees take a holy dip in the Yamuna at places like Mathura, Vrindavan, and Bateshwar, and give offerings of watermelon and cucumber.At the Dashashwamedh Ghat in Varanasi, rituals like deep daan aarti are done.
॥ गंगा दशहरा स्तोत्रम् ॥
नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः।
नमस्ते विष्णुरुपिण्यै, ब्रह्ममूर्त्यै नमोऽस्तु ते॥
नमस्ते रुद्र–रुपिण्यै शाङ्कर्यै ते नमो नमः।
सर्वदेव–स्वरुपिण्यै नमो भेषज–मूर्त्तये॥
शिव–स्वरूपा श्रीगंगा जी को नमस्कार है। कल्याणदायिनी गंगा जी को नमस्कार है। हे देवि गंगे! आप विष्णुरूपिणी हैं, आपको नमस्कार है। हे ब्रह्मस्वरूपा! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे रुद्रस्वरूपिणी! शांकरी! आपको नमस्कार है। हे सर्वदेवस्वरूपा! औषधिरूपा! देवी आपको नमस्कार है।
सर्वस्य सर्वव्याधीनां, भिषक्श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।
स्थास्नु जङ्गम सम्भूत विषहन्त्र्यै नमोऽस्तु ते॥
संसारविषनाशिन्यै,जीवनायै नमोऽस्तु ते।
तापत्रितयसंहन्त्र्यै,प्राणेश्यै ते नमो नमः॥
आप सबके संपूर्ण रोगों की श्रेष्ठ वैद्य हैं, आपको नमस्कार है। स्थावर और जंगम प्राणियों से प्रकट होने वाले विष का आप नाश करने वाली हैं, आपको नमस्कार है। संसार के विषय रूपी विष का नाश करने वाली जीवनरूपा आपको नमस्कार है। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक तीनों प्रकार के क्लेशों का संहार करने वाली आपको नमस्कार है। प्राणों की स्वामिनी आपको नमस्कार है, नमस्कार है।
शांतिसन्तानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्त्तये।
सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नमः पापारिमूर्त्तये॥
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमो नमः।
भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमोऽस्तु ते॥
शांति का विस्तार करने वाली शुद्ध स्वरूपा आपको नमस्कार है। सबको शुद्ध करने वाली तथा पापों की शत्रुस्वरूपा आपको नमस्कार है। भोग, मोक्ष तथा कल्याण प्रदान करने वाली आपको बार-बार नमस्कार है। भोग और उपभोग देने वाली भोगवती नाम से प्रसिद्ध आप पाताल गंगा को नमस्कार है।
मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु स्वर्गदायै नमो नमः।
नमस्त्रैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमो नमः॥
नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नमः।
त्रिहुताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमो नमः॥
मंदाकिनी नाम से प्रसिद्ध तथा स्वर्ग प्रदान करने वाली आप आकाश गंगा को बार-बार नमस्कार है। आप भूतल, आकाश और पाताल तीन मार्गों से जाने वाली और तीनों लोकों की आभूषण स्वरूपा है, आपको बार-बार नमस्कार है। गंगाद्वार, प्रयाग और गंगा सागर संगम इन तीन विशुद्ध तीर्थ स्थानों में विराजमान आपको नमस्कार है। क्षमावती आपको नमस्कार है। गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्निरूप त्रिविध अग्नियों में स्थित रहने वाली तेजोमयी आपको बार-बार नमस्कार है। आप ही अलकनंदा हैं, आपको नमस्कार है।
नन्दायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नमः।
नमस्ते विश्वमुख्यायै रेवत्यै ते नमो नमः॥
बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु लोकधात्र्यै नमोऽस्तु ते।
नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नमः॥
शिवलिंग धारण करने वाली आपको नमस्कार है। सुधाधारामयी आपको नमस्कार है। जगत में मुख्य सरितारूप आपको नमस्कार है। रेवतीनक्षत्ररूपा आपको नमस्कार है। बृहती नाम से प्रसिद्ध आपको नमस्कार है। लोकों को धारण करने वाली आपको नमस्कार है। संपूर्ण विश्व के लिए मित्ररूपा आपको नमस्कार है। समृद्धि देकर आनंदित करने वाली आपको नमस्कार है।
पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमो नमः।
परापरशताढ्यायै तारायै ते नमो नमः॥
पाशजालनिकृन्तिन्यै अभिन्नायै नमोऽस्तु ते।
शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः॥
हे मां गंगा,आप पृथ्वीरूपा हैं, आपको नमस्कार है। आपका जल कल्याणमय है और आप उत्तम धर्मस्वरूपा हैं, आपको नमस्कार है, नमस्कार है। बड़े-छोटे सैकड़ों प्राणियों से सेवित आपको नमस्कार है। सबको तारने वाली आपको नमस्कार है, नमस्कार है। संसार बंधन का उच्छेद करने वाली अद्वैतरूपा आपको नमस्कार है। आप परम शांत, सर्वश्रेष्ठ तथा मनोवांछित वर देने वाली हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है।
उग्रायै सुखजग्ध्यै च सञ्जीवन्यै नमोऽस्तु ते।
ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः॥
प्रणतार्तिप्रभञ्जिन्यै जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।
सर्वापत्प्रतिपक्षायै मङ्गलायै नमो नमः॥
आप प्रलयकाल में उग्ररूपा हैं, अन्य समय में सदा सुख का भोग करवाने वाली हैं तथा उत्तम जीवन प्रदान करने वाली हैं, आपको नमस्कार है। आप ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मज्ञान देने वाली तथा पापों का नाश करने वाली हैं। आपको बार-बार नमस्कार है। प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करने वाली जगन्माता आपको नमस्कार है। आप समस्त विपत्तियों की शत्रुभूता तथा सबके लिए मंगलस्वरूपा हैं, आपके लिए बार-बार नमस्कार है।
शरणागत–दीनार्त–परित्राण–परायणे।
सर्वस्यार्ति हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते॥
निर्लेपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमो नमः।
परापरपरायै च गङ्गे निर्वाणदायिनि॥
शरणागतों, दीनों तथा पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली और सबकी पीड़ा दूर करने वाली देवि नारायणि! आपको नमस्कार है। आप पाप-ताप अथवा अविद्यारूपी मल से निर्लिप्त, दुर्गम दुख का नाश करने वाली तथा दक्ष हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है। आप, पर और अपर सबसे परे हैं। मोक्षदायिनी गंगे! आपको नमस्कार है।
गङ्गे ममाऽग्रतो भूया गङ्गे मे तिष्ठ पृष्ठतः।
गङ्गे मे पार्श्वयोरेधि गंङ्गे त्वय्यस्तु मे स्थितिः॥
आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्वं त्वं गाङ्गते शिवे!
त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।
गङ्गे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नमः शिवे॥
गंगे! आप मेरे आगे हों, गंगे! आप मेरे पीछे रहें, गंगे! आप मेरे उभयपार्श्व में स्थित हों तथा गंगे! मेरी आप में ही स्थिति हो। आकाशगामिनी कल्याणमयी गंगे! आदि, मध्य और अंत में सर्वत्र आप हैं गंगे! आप ही मूलप्रकृति हैं, आप ही परम पुरुष हैं तथा आप ही परमात्मा शिव हैं। शिवे! आपको नमस्कार है।
इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पढ़ना, सुनना मन, वाणी और शरीर द्वारा होने वाले पूर्वोक्त दस प्रकार के पापों से मुक्त कर देता है। यह स्तोत्र जिसके घर लिखकर रखा हुआ होता है उसे कभी अग्नि, चोर, सर्प आदि का भय नहीं रहता है।
दस दिनात्मक गंगा दशहरा पर्व में गंगा माँ की वंदनात्मक उपासना तथा पापनाश के लिए श्रद्धालु, इस गंगा दशहरा स्तोत्र का एकोत्तर वृद्धि से पाठ किया करते हैं। अर्थात्- ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को इस स्तोत्र का एक बार पाठ करे ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया को इसके दो पाठ करे। इसी तरह तृतीया को तीन बार, चतुर्थी को 4, पंचमी को 5, षष्ठी को 6, सप्तमी को 7 बार, अष्टमी को 8, नवमी को 9 तथा दशमी को 10 बार पाठ करे। इस प्रकार यह पापनाशक दसदिनात्मक अनुष्ठान पूरा होता है।
'ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा'
इस मंत्र का भी गंगा दशहरा के दिन यथाशक्ति पाठ करना चाहिए। इस प्रकार विधिवत पूजा कर दिन भर उपवास करने वाले के ऊपर बताये गये दस पापों को गंगा जी हर लेती हैं।
शास्त्रों में वर्णन है कि वामन अवतार के समय विस्तीर्ण पादक्षेप कर तीन पगों में समस्त सृष्टि नाप लेने के लिए विष्णु जी ने जब कदम के आघात से ब्रह्मरंध्र को भी भेद दिया, तब उनके पैरों से निकल रहे गंगाजी रूपी उस जल को कमंडल में ब्रह्माजी ने भर लिया। विष्णुपदी इन गंगाजी का एक अन्य प्रसंग है कि महादेव शिव का संगीत सुन कर विष्णु द्रवीभूत हो गए तो ब्रह्मा ने अपना कमंडल भर लिया और फिर भूतल पर भगीरथ के माध्यम से जल को भेजा।
एक अन्य कथा में कहा गया है कि गंगा को पीहर छोड़ते समय उनकी मां ने शोकाभिभूत हो गंगा को सलिल रूपिणी होने को कह दिया। फलस्वरूप गंगाजी ने जल रूप में ब्रह्मा के कमंडल में वास किया। गंगा जी त्रिपथगा भी हैं। ये स्वर्ग में अलकनंदा, भूतल पर भागीरथी और पाताल में अधोगंगा नाम से प्रसिद्ध हुईं। इन तीनों धाराओं का मूल स्रोत स्वर्ग में है जिसे स्वर्घुनी कहते हैं।
गंगा जी के अवतरण के संदर्भ में कथा है कि अयोध्या के सूर्यवंशी राजा सगर ने एक बार अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया। यज्ञीय घोड़े की रक्षा के लिए उनके साठ हजार पुत्र भी उसके पीछे-पीछे गए। इन्द्र ने ईर्ष्यावश उस अश्व को पकड़वाकर कपिल मुनि के आश्रम में बंधवा दिया। सगर पुत्र सब जगह खोजते हुए जब अंत में वे कपिल मुनि के आश्रम में गए तो वहां घोड़े देखकर शोर मचाने लगे और उनको बुरा-भला कहा। कपिल मुनि को इन्द्र के षडय़ंत्र का पता न था। अतएव उन्हें क्रोध आया और उन्होंने शाप देकर राजकुमारों को भस्म कर दिया। बहुत दिन बीतने पर जब राजकुमार लौटकर नहीं आए तो राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को पता लगाने के लिए भेजा। उत्साही और कुशल अंशुमान ने घोड़े का पता लगाया और अपने पितृगणों की दुर्दशा भी देखी। उसे गरुड़ से यह भी ज्ञात हुआ कि भस्म हुए राजकुमारों का उद्धार तभी संभव है, जब स्वर्ग लोक से गंगाजी को पृथ्वी पर लाया जाए और उनके पवित्र जल से इन सबकी भस्म का स्पर्श कराया जाए। गरुड़ ने कहा कि पहले घोड़ा ले जाकर यज्ञ पूरा कीजिये। अंशुमान ने वैसा ही किया, पर स्वर्ग से गंगाजी का लाना आसान न था। पहले राजा सगर , अंशुमान ने और बाद में दिलीप ने भी कठोर तपस्या की किंतु सफल नहीं हुए।
तब परम धार्मिक राजा भगीरथ अपने पितामहों का उद्धार करने की इच्छा से तपस्या करने गोकर्ण तीर्थ, हिमालय में गए। उनके तप ने देवताओं को विचलित कर दिया। ब्रह्मा जी देवताओं के साथ राजा के पास गए और उनसे वरदान मांगने को कहा। भगीरथ ने गंगावतरण की प्रार्थना की। ब्रह्माजी ने कमंडल से गंगाजी को पृथ्वी पर पहुंचाना स्वीकार कर लिया, किंतु कहा कि गंगाजी की वेगवती धारा को भूतल पर संभालने का प्रबंध करना पड़ेगा। यह भी कहा कि उनकी धारा को केवल शिवजी रोक सकते हैं। तब राजा भगीरथ शिवजी को प्रसन्न करने में लग गए। शिवजी ने गंगा की वेगवती धारा को संभालने का कार्य अंगीकार करते हुए अपनी जटा से गंगा को रोका और बाद में जटा के अग्रभाग को निचोड़ कर बिन्दु के रूप में गंगा जी को बाहर निकाला। वह बिन्दु शिवजी के निवास स्थान कैलाश के पास बिन्दु सरोवर में गिरा। वहां पर गंगाजी की सात धाराएं हो गईं। तीन धाराएं हादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व दिशा में तथा सुचक्षु, सीता और सिन्धु ये तीन धाराएं पश्चिम की ओर चल पड़ीं। सातवीं धारा राजा भगीरथ के साथ उनके पूर्वजों के उद्धार के लिए चल पड़ी, किंतु मार्ग में राजर्षि जह्नु का तपोवन था। वे तप में लीन थे। धारा ने जब उथल-पुथल मचा दी तो जह्नुजी ने क्रोधित होकर मार्ग रोक दिया।
फिर भगीरथ ने प्रार्थना की तो मुक्त कर दिया। वहां से गंगा माँ सगर पुत्रों के भस्मावशेष के पास पहुंचीं और उन्हें मुक्त करके समुद्र में मिल गईं और भगीरथ वापस अयोध्या आ गए।
ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा
इस मंत्र द्वारा ही किए जाने चाहिए। जिनका यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुअ उन द्वारा ॐ तथा स्वाहा का उच्चारण करना वर्जित है, इसलिए वे श्री शिव नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः इ मंत्र को कहें।
इसके साथ ही ब्रह्माजी, विष्णुजी, शिवजी, सूर्य) का, हिमवान् पर्वत और राजा भगीरथ का भी भलीभांति अर्चन-स्मरण करना चाहिए। फिर दस ब्राह्मणों को - दस के ही वजन में [दस ग्राम/किलो/ सेर आदि] तिल दान करें व गंगा दशहरा स्तोत्र पढ़ें। गंगा जी का वह पवित्र स्तोत्र अनुवाद सहित प्रस्तुत किया है.
पतित पावनी पाप नाशिनी।
करुणामयी ममतामयी गंगे ॥
हर हर गंगे। हर हर गंगे।
हर हर गंगे। जय माँ गंगे ॥
हर हर गंगे। हर हर गंगे।
हर हर गंगे ॥
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