top of page
Search

Why is Lord Shiv called Pashupati? शिव को क्यों कहा जाता है ‘पशुपति’, शिव पुराण में छिपा है इसका रहस्य

Shiv Puran: भगवान शिव (Lord Shiva) का एक नाम पशुपति (Pashupati) है. उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है. इस नाम के पीछे एक रहस्य जुड़ा है. जिसका वर्णन शिव पुराण में मिलता है.

शिव पुराण

Shiv Puran Lord Shiva भगवान शिव को अनेकों नामों से जाना जाता है. उन्हें भोले भंडारी, महादेव, देवाधिदेव, भोलनाथ, शंकर, गंगाधर, आदिदेव, नीलकंठ आदि जैसे कई नामों से जाना जाता है. शिवजी के हर नाम से कोई कहानी या रहस्य जुड़ा होता है.


जैसे समुंद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान करने के कारण शिव का कंठ नीला पड़ गया था, जिस कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा. इसी तरह उनके अन्य नामों के साथ ऐसी ही कथाएं और रहस्य जुड़े हैं. भगवान शिव के कई नामों में एक नाम पशुपति या पशुपतिनाथ भी है. आज हम शिवजी के इसी नाम के रहस्य के बरे में जानेंगे.


शिव को पशुपति नाम कैसे मिला


एक बार ब्रह्मांड की सारी शक्तियों से मिलकर शिव के लिए दिव्य रथ तैयार किया गया. विष्णु जी शिव के बाण और अग्नि देव बाण की नोंक बनें. ऋषि, देवता, गन्धर्व, नाग, लोकपाल, ब्रह्मा, विष्णु सभी उनकी स्तुति कर रहे थे. लेकिन जैसे ही शिवजी उस दिव्य रथ पर चढ़ने लगे, घोड़े सिर के बल जमीन पर गिर पड़े. पृथ्वी डगमगाने लगी. सहसा शेषनाग भी शिव का भार नहीं सह सके और आतुर होकर कांपने लगे.


तब भगवान धरणीधर ने नंदीश्वर रूप धारणकर रथ को उठाया. लेकिन वह भी शिव के उत्तम तेज को सहन न कर सके और घुटने टेक दिए. इसके बाद ब्रह्मा जी ने शिवजी की आज्ञा से हाथ में चाबुक लेकर घोड़ों को उठाकर रथ को खड़ा किया. फिर शिवजी उस उत्तम रथ में बैठे और ब्रह्मा जी ने रथ में जुते हुए मन और वायु के समान वेगशाली वेदमय घोड़ों को उन तपस्वी दानवों के आकाश स्थित तीनों पुरों को लक्ष्य करके आगे बढ़ाया.


शिव ने बताया पशुपत व्रत का महत्व


तब भगवान शिव सभी देवताओं से कहने लगे कि, अगर आप सभी देवों और अन्य प्राणियों के विषय में थोड़ी-थोड़ी पशुत्व की कल्पना करके उन पशुओं का आधिपत्य मुझे प्रदान कर दें तो मैं उन असुरों का संहार करूंगा. क्योंकि तभी वो दैत्य मारे जा सकते हैं, नहीं तो उनका अंत असंभव है.


देवाधिदेव महादेव की इस बात से सभी देवता पशुत्व के प्रति सशंकित हो उठे, जिससे कि उनका मन खिन्न हो गया. शिव ने देवताओं से कहा, पशु भाव पाने के बाद भी किसी का पतन नहीं होगा. मैं उस पशुभाव से विमुक्त होने का उपाय भी बताता हूं, सो सुनिए और वैसा ही करिए.


शिवजी ने कहा, जो इस दिव्य पशुपत व्रत का पालन करेगा, वह पशुत्व से मुक्त हो जाएगा. आप सभी के अलावा जो अन्य प्राणी मेरे पशुपत व्रत को करेंगे, वे भी पशुत्व से मुक्त हो जाएंगे और जो नैष्ठिक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए 12 साल तक, 6 साल तक या 3 साल तक मेरी सेवा करेगा या करायेगा, वह भी पशुत्व से विमुक्त हो जाएगा. ऐसे में जब आप सभी इस दिव्य व्रत का पालन करेंगे तो उसी समय पशुत्व से मुक्त हो जाएंगे, इसमें जरा भी संशय नहीं है.


इसके बाद कई देवता और असुर भगवान शिव के पशु बने और पशुत्वरूपी पाश से विमुक्त करने वाले शिव पशुपति कहलाएं. इसके बाद से ही शिव का ‘पशुपति’ नाम संसार में विख्यात हुआ.


2 views0 comments

Recent Posts

See All

अनुच्छिष्ट ध्यानाची कल्पना

अनुच्छिष्ट ध्यानाची कल्पना पुंडरीक : "परंतु आता जर तुझे 'हृदयपरिवर्तन' झाले असेल आणि तू माझ्या प्रेमासाठीच इथे आला असशील, तर मी जे जे...

Comentarios

Obtuvo 0 de 5 estrellas.
Aún no hay calificaciones

Agrega una calificación

Download PANDITJIPUNE

Download the “PANDITJIPUNE” app to easily stay updated on the go.

Scan QR code to join the app
Download on the App Store
Get it on Google Play
bottom of page
Locator
All locations
    https://manage.wix.com/catalog-feed/v1/feed.tsv?marketplace=google&version=1&token=L6pyf%2F%2BCAsNOB5TcfltUWwm29a2SdYssSfYd%2BVC1LUyXMYQdHORi5DDXy48%2BwmbI&productsOnly=false